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Zulm Shayari|जुल्म शायरी हिंदी में|

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Zulm Shayari|जुल्म शायरी हिंदी में|-ज़ुल्म, इंसानियत के खिलाफ एक ऐसा कृत्य है जो न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी किसी को तोड़ देता है। यह किसी भी रूप में हो सकता है – किसी पर शारीरिक उत्पीड़न, समाज में भेदभाव, या फिर महिलाओं और कमजोर वर्गों पर किए जाने वाले अन्याय। ज़ुल्म करने वाले यह नहीं समझ पाते कि उनका यह कृत्य न केवल दूसरे इंसान की जिंदगी कोनष्टकरता है, बल्कि उनके अपने दिल और आत्मा को भी गहरे घाव देता है।हमारी ज़ुल्म शायरी का उद्देश्य उन दर्दनाक अनुभवों को शब्दों में ढालना है, जिनसे हम या हमारे आसपास के लोग गुजरते हैं। यह शायरी दर्द, आक्रोश, और नफरत के साथ-साथ न्याय की उम्मीद और सत्य के आने की उम्मीद को भी प्रकट करती है। शायरी में ज़ुल्म करने वालों को चेतावनी दी जाती है कि उनका समय आता है, जब सच्चाई और इंसानियत ही विजयी होती है।इस पोस्ट में आप पाएंगे कुछ ऐसी शायरी, जो ज़ुल्म के खिलाफ आवाज उठाती हैं और उन लोगों के लिए है जो ज़ुल्म सहने के बाद भी अपनी उम्मीद और आत्मसम्मान नहीं खोते। इन शायरियों में दर्द, जद्दोजहद, और बदलाव की आवश्यकता के संदेश छिपे हुए हैं।

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1-Zulm Shayari (Hindi)

Zulm Shayari|जुल्म शायरी हिंदी में|
Zulm Shayari|जुल्म शायरी हिंदी में|


1.
ज़ुल्म जब हद से बढ़ जाता है,
तब इंसानियत चुप हो जाती है।
कभी तुमने महसूस किया है,
दर्द दिल का जब किसी को नज़र नहीं आता है।??

2.
उनका खौ़फ भी एक दिन कम हो जाएगा,
पर ज़ुल्म करने वाला कभी नहीं सुधरेगा।
हर वो ग़म जो छुपा कर रखा हमने,
सच मानो, वो कभी मिटेगा नहीं।

3.
दुनिया में कुछ लोग सिर्फ इसलिए ज़ुल्म करते हैं,
क्योंकि उन्हें समझने वाला कोई नहीं होता।

Zulm Shayari|जुल्म शायरी हिंदी में|
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4.
जब-जब खुदा ने खामोशी से सुनी हमारी पुकार,
तब-तब हुआ दुनिया में जुल्म का विस्तार।

5.
ज़ुल्म की चुप्प सजा है बहुत बड़ी,
हर दुआ होती है एक तड़प में बंद।

6.
वो जो हमें बेइज़्ज़त कर जाते हैं,
समझते नहीं, वो भी कभी उसी दर्द में होंगे।

7.
जब इंसान अपने हक़ की बात करता है,
तब दुनिया उस पर ज़ुल्म करती है।

8.
ज़ुल्म की आंधी में, कभी सच का चेहरा नहीं दिखता,
कभी कभी तो इंसान खुद को भी पहचान नहीं पाता।

9.
ज़ुल्म करोगे तो कुछ समय तक चैन से रहोगे,
पर याद रखना, वो दिन दूर नहीं जब तुम खुद रोओगे।

10.
ज़ुल्म की कोई भी दीवार कभी मजबूत नहीं रहती,
अभी चुप हैं लोग, कल फिर से वो उठ खड़े होंगे।

11.
कभी-कभी ज़ुल्म को देखकर लगता है,
क्या इस दुनिया में सचमुच इंसानियत बची है?

12.
इंसानियत का खून कर के जो जीते हैं,
उनसे यह सवाल है कि तुम आखिर क्यों जी रहे हो?

13.
ज़ुल्म को ताकत के नाम पर न करते जाओ,
एक दिन यही ताकत तुम्हें तबाह कर जाएगी।

14.
आदमी किसी का न हो तो ज़ुल्म करता है,
मगर ज़ुल्म का असर एक दिन उसी पर होता है।

15.
अगर ज़ुल्म सहने वाले चुप हैं,
तो इसका मतलब यह नहीं कि वो डर गए हैं।

16.
जो ज़ुल्म करता है, वो कभी खुश नहीं रहता,
क्योंकि उसका दिल कभी सुकून से नहीं रहता।

17.
ज़ुल्म की राह पर चलने वाले लोग,
अक्सर खुद को खो देते हैं।

18.
दर्द छुपा कर सहना ज़ुल्म की निशानी है,
पर याद रखना, हर दर्द एक दिन दिखता है।

19.
ज़ुल्म के बाद जो खामोश रहते हैं,
उनकी आँखों में ग़म की गहरी लकीर होती है।

20.
तुमने जो ज़ुल्म किया, वो याद रहेगा,
पर एक दिन तुम्हारा भी हिसाब होगा।

Mazhab ke Naam Par Zulm Shayari (Hindi)


1.
धर्म के नाम पर ज़ुल्म करते हो तुम,
खुद को धार्मिक कैसे कहते हो तुम ?

Zulm Shayari|जुल्म शायरी हिंदी में|
Zulm Shayari|जुल्म शायरी हिंदी में|

2.
मज़हब का नाम लेकर जब इंसानियत मरती है,
तब दुनिया में कोई ईश्वर क्यों नहीं दिखता है।

3.
मज़हब को इंसानियत से ऊपर रख कर,
क्या तुम यह भूल गए हो कि सबका दिल एक सा है?

4.
धर्म के नाम पर ज़ुल्म को बढ़ावा मत दो,
क्योंकि प्यार ही सबसे बड़ा धर्म है।

5.
मज़हब नहीं सिखाता हमें किसी को नफ़रत करना,
बल्कि सिखाता है प्यार और इंसानियत को सहेजना।

6.
ज़ुल्म धर्म के नाम पर सबसे बड़ा पाप है,
जो इसे बढ़ाते हैं, वो खुद को नफ़रत से भरते हैं।

7.
धर्म का क़ुतुबख़ाना नफरत नहीं, प्रेम होना चाहिए,
अगर कोई इसे बिगाड़े, तो उसे सज़ा मिलनी चाहिए।

8.
मज़हब का मतलब नहीं, मन का बदलाव चाहिए,
जहां से सच्ची अच्छाई से हो एक नई शुरुआत चाहिए।

9.
धर्म का झंडा तले जब ज़ुल्म होता है,
तब वह इंसानियत का सबसे बड़ा गुनाह होता है।

10.
मज़हब के नाम पर जो ज़ुल्म करते हैं,
क्या वो कभी खुदा से डरते हैं?

11.
अगर तुम खुदा की सच्ची राह पर हो,
तो किसी के साथ ज़ुल्म नहीं कर सकते हो।

12.
मज़हब सिर्फ एक रास्ता है,
लेकिन इंसानियत का रास्ता बहुत ही बड़ा है।

13.
धर्म का काम इंसानियत को बढ़ावा देना है,
नफरत और ज़ुल्म को फैलाना नहीं है।

14.
तुम्हारे ज़ुल्म के बावजूद अगर किसी का दिल शांत है,
तो समझो वह इंसानियत का सच्चा चेहरा है।

15.
धर्म की पहचान यह नहीं होती कि तुम क्या मानते हो,
बल्कि यह होती है कि तुम दूसरों के साथ क्या करते हो।

16.
अगर मज़हब के नाम पर तुम ज़ुल्म कर रहे हो,
तो समझो तुम नफ़रत फैलाने का हिस्सा बन रहे हो।

17.
धर्म का सबसे बड़ा पाठ यह है कि तुम किसी पर ज़ुल्म न करो,
लेकिन कुछ लोग इस पाठ को समझ नहीं पाते।

18.
किसी की ज़िंदगी में ज़ुल्म से धर्म नहीं आता,
सच्चे धर्म में तो केवल प्रेम और न्याय आता है।

19.
जब धर्म और ज़ुल्म का मिलाजुला होता है,
तो वह इंसानियत को खत्म कर देता है।

20.
धर्म के नाम पर जो तुम ज़ुल्म करते हो,
क्या तुमने कभी खुद से सवाल किया है?

Aurat Par Zulm Shayari (Hindi)


1.
औरत को कमजोर समझना तुम्हारी भूल है,
उसमें एक आग है, जो हर दर्द को सहेज कर भी जलती है।

2.
औरत पर किए गए ज़ुल्म कभी भुलाए नहीं जाते,
क्योंकि उनका दर्द हमेशा उनके दिल में रह जाता है।

3.
ज़ुल्म सहकर भी वह मुस्कुराती रहती है,
उसकी आँखों में आंसू नहीं, उम्मीद की किरण रहती है।

4.
एक औरत का हक़ छीनने वाला,
कभी अपनी माँ को समझ नहीं पाता।

5.
कभी औरत को सिर झुकाने की गलती मत करना,
क्योंकि वह खुद अपनी दुनिया खड़ी कर सकती है।

6.
औरत को जब ज़ुल्म सहने पर मजबूर किया जाता है,
तब वह खुद को और भी मजबूत बना लेती है।

7.
उसकी आँखों में ग़म की लहर है,
लेकिन ज़ुल्म के खिलाफ उसकी ताकत है।

8.
जो औरत के दर्द को न समझे,
वह कभी सच्चा इंसान नहीं बन सकता।

9.
औरत को समझो, वह सिर्फ माँ, बहन या बेटी नहीं होती,
वह एक समाज, एक दुनिया की पहचान होती है।

10.
औरत पर ज़ुल्म करके जो खुश होते हैं,
उनसे पूछो, क्या तुमने अपनी माँ को कभी समझा है?

11.
ज़ुल्म की राह पर चलने वाले कभी जीत नहीं सकते,
क्योंकि औरतों में जो ताकत होती है, वो ज़ुल्म से कहीं ज्यादा होती है।

12.
कभी-कभी औरत को चुप रहने दो,
वह जब बोलेगी, तब सारा जहाँ सुनने को मजबूर होगा।

13.
औरत पर ज़ुल्म करना अब बंद करो,
क्योंकि वह अपनी आवाज़ उठाएगी और दुनिया बदल देगी।

14.
ज़ुल्म सहने वाली औरत, उस पर गुस्से का असर नहीं होता,
क्योंकि वह हर दर्द को दिल में दफन कर देती है।

15.
औरत को न समझना, यही सबसे बड़ा ज़ुल्म है,
उसकी ताकत को न देखना, यही सबसे बड़ा अपराध है।

16.
जो औरत के साथ ज़ुल्म करते हैं,
क्या वो कभी अपनी बहन का चेहरा नहीं देखते?

17.
औरत का दिल बेशुमार प्यार से भरा होता है,
लेकिन जब ज़ुल्म बढ़ता है, तो वह भी कड़ा हो जाता है।

18.
कभी औरत पर ज़ुल्म करने से पहले,
यह याद रखो कि तुम भी किसी की बहन हो।

19.
औरत की आवाज़ सुनने का हक़ उसे जन्म से मिलता है,
ज़ुल्म करना उस आवाज़ को दबाना नहीं होता।

20.
ज़ुल्म करने वाले लोग, औरत की ताकत को कभी नहीं समझ पाते,
क्योंकि वे सिर्फ नफ़रत फैलाते हैं, पर उसका जवाब कभी नहीं पा सकते।

]4. Zulm Shayari (Hindi)


1.
ज़ुल्म कर के कुछ पल की ख़ुशी पाने वाला,
कभी नहीं समझ पाता उस दर्द को जो उसने दिया है।

2.
जब ज़ुल्म की चुप्प होती है, तब इंसानियत मर जाती है,
लेकिन एक दिन सच सामने आता है और गुनाहगार भी पकड़ में आता है।

3.
कभी कभी ज़ुल्म खुदा से भी बढ़ जाता है,
पर याद रखना, भगवान हर किसी को कभी न कभी सजा देता है।

4.
जिन्होंने ज़ुल्म किया है, उनका समय भी आता है,
कभी न कभी उनका दिल भी खुदा से टूटता है।

5.
तुमने जितना भी ज़ुल्म किया है,
वो सब एक दिन तुम्हारी ज़िंदगी में पलट कर आएगा।

6.
ज़ुल्म जब किसी पर होता है, तो उसका दिल कांपता है,
लेकिन वही दिल कभी एक दिन खुद को उठा कर खड़ा कर लेता है।

7.
ज़ुल्म की आंधी से कोई बच नहीं पाता,
लेकिन जो कड़ी मेहनत करता है, वही रास्ता पाता है।

8.
ज़ुल्म की चुप्प कभी लंबी नहीं रहती,
कभी न कभी सच्चाई सामने आ ही जाती है।

9.
तुमने किसी पर ज़ुल्म किया है तो यह मत समझो,
वह सब कुछ भूल गया है, एक दिन वह सामने आएगा।

10.
ज़ुल्म से कभी कुछ नहीं हासिल होता,
जो दिलों को तोड़ता है, वही खुद टूटता है।

11.
जो ज़ुल्म सहते हैं, उनका दर्द कभी खत्म नहीं होता,
लेकिन समय के साथ उनका साहस और बढ़ जाता है।

12.
ज़ुल्म का असर सिर्फ उस इंसान पर नहीं होता,
जो सहता है, बल्कि उस पर भी होता है जो करता है।

13.
तुमने जिन पर ज़ुल्म किया है,
वे चुप हैं, लेकिन कभी अपनी आवाज़ उठाएंगे।

14.
ज़ुल्म के बाद इंसान को पछतावा जरूर होता है,
लेकिन वह पछतावा तब तक किसी को नहीं दिखता, जब तक उसका वक्त नहीं आता।

15.
ज़ुल्म हर किसी को सिखाता है,
कभी न कभी इंसानियत ही सबसे ऊपर होती है।

16.
ज़ुल्म कर के, क्या तुम्हें लगता है तुम जीत गए हो?
जब वक्त आएगा, तुम खुद ही हार जाओगे।

17.
ज़ुल्म करने वाले कभी भी सुकून से नहीं रह सकते,
वो हमेशा उस दर्द में जीते हैं, जो उन्होंने दूसरों को दिया है।

18.
जो किसी पर ज़ुल्म करते हैं, उनका दिल कभी आराम नहीं पाता,
वो हर वक्त उस ग़म के साये में रहते हैं।

19.
ज़ुल्म करने से कुछ नहीं मिलता,
यह सिर्फ दिलों में नफ़रत और ग़म पैदा करता है।

20.
ज़ुल्म से इंसानियत को खत्म किया जाता है,
लेकिन अंत में यही इंसानियत हर ज़ुल्म को नष्ट कर देती है।

Zulm Shayari (Urdu)


1.
ظلم کا انجام کبھی اچھا نہیں ہوتا،
یہ انسانیت کو تکلیف دیتا ہے، اور آخرکار خود کو بھی مٹا دیتا ہے۔

2.
جب ظلم کی چپ ہوتی ہے، تو انسان سوچتا ہے،
کیا یہ صرف وہی ہیں جو چپ ہیں؟ ہر درد کا جواب ملتا ہے۔

3.
ظلم کا ایک دن انتھائی وقت آتا ہے،
خود کو بچانے والے کبھی نہیں بچ پاتے۔

4.
جو ظلم کرتا ہے، وہ اپنے دل کا سکون نہیں پاتا،
کسی دن وہ خود اسی دکھ کا سامنا کرتا ہے۔

5.
ظلم کرنے والوں کی راتیں کبھی سکون سے نہیں گذرتیں،
جب تک تمہارا گناہ تمھیں تنگ نہیں کرتا۔

6.
ظلم کا رد عمل ہمیشہ برا ہوتا ہے،
چاہے تم کتنی بھی کوشش کر لو، حقیقت سامنے آ ہی جاتی ہے۔

7.
جو دوسروں پر ظلم کرتے ہیں، وہ کبھی خوش نہیں رہ سکتے،
کیونکہ ظلم کا بدلہ ہمیشہ خود ان کے ساتھ آتا ہے۔

8.
ظلم کی زبان چپ ہوتی ہے، مگر دل کی آواز چھپتی نہیں،
سچ کبھی نہ کبھی سامنے آ ہی جاتا ہے۔

9.
ظلم کر کے تم تھوڑی دیر کے لیے خوش ہو سکتے ہو،
لیکن یاد رکھو، تمہیں اس کا بدلہ ہمیشہ ملے گا۔

10.
جو ظلم کرتے ہیں، وہ کبھی سکون سے نہیں سوتے،
ان کے دل کی تڑپ انہیں چین نہیں لینے دیتی۔

11.
ظلم کا پھیلاؤ کبھی کامیاب نہیں ہوتا،
آخرکار وہ سچائی کے سامنے ہار جاتا ہے۔

12.
تم نے جو ظلم کیا ہے، وہ تمہارے دل کی گہرائیوں تک جائے گا،
یہ تمہارے دل میں چھپے دکھ کی صورت میں واپس آئے گا۔

13.
ظلم کی زبان ہمیشہ ٹوٹتی ہے،
وقت بدلتا ہے اور جب حقیقت سامنے آتی ہے، تو سب کچھ سامنے آتا ہے۔

14.
ظلم کی چپ میں تمہارے لئے اور بھی بڑی سزا چھپی ہوتی ہے،
ایک دن تمہیں بھی وہ گزرے گا جو تم نے کسی اور کو دیا۔

15.
ظلم کا راستہ کبھی کامیاب نہیں ہوتا،
آخرکار وہ ہر بار اپنی ہی ہار پاتا ہے۔

16.
جو ظلم کرتا ہے، وہ کبھی سکون نہیں پا سکتا،
اس کے دل میں ہمیشہ درد اور گناہ کی لکیریں رہتی ہیں۔

17.
تم جو ظلم کرتے ہو، اس کا حساب ایک دن ضرور ہوگا،
وقت آنے پر تمہیں بھی اس کا بدلہ ملے گا۔

18.
ظلم کا مقابلہ نہیں کیا جا سکتا،
لیکن اس کا بدلہ ہمیشہ خود زمانہ لیتا ہے۔

19.
ظلم کرنا آسان لگتا ہے،
مگر اس کا رد عمل ہمیشہ انسان کے دل میں درد پیدا کرتا ہے۔

20.
ظلم کرنے والے کبھی سکون میں نہیں رہ سکتے،
ان کا دل ہمیشہ ملال اور گناہ سے بھرا ہوتا ہے۔


🌿 कश्मीर ज़ुल्म शायरी | Kashmir Zulm Shayari
1.
चुप हैं पहाड़, खामोश है झील,
आँखों में कैद है ज़ुल्म की
कश्मीर पूछता है हर शाम,
क्या कभी लौटेगा वो सुकून का पैग़ाम?

Chup hain pahaad, khaamosh hai jheel,
Aankhon mein qaid hai zulm ki peed
Kashmir poochhta hai har shaam,
Kya kabhi lautega wo sukoon ka paighaam?

2.
न फूल मुस्काते हैं, न परिंदे गाते हैं,
इस वादी में अब बस आंसू बरसाते हैं।
हर दिल के भीतर तूफ़ान सा है,
कश्मीर आज भी इंसाफ़ को तरसता है।
Na phool muskaate hain, na parinde gaate hain,
Is waadi mein ab bas aansoo barasaate hain.
Har dil ke bheetar toofaan sa hai,
Kashmir aaj bhi insaaf ko tarasta hai.

3.
तू कहे ज़मीन मेरी, मैं कहूं ये जान मेरी,
फिर क्यों बहती है हर रोज़ यहाँ खून की नदियाँ गहरी?
मज़हब के नाम पर क्यों बांटे घर, रिश्ते, रस्ते,
कश्मीर की चीख़ें भी अब सवाल करने लगी हैं सख्ते।

Tu kahe zameen meri, main kahoon ye jaan meri,
Phir kyun bahti hai har roz yahaan khoon ki nadiyaan gehri?
Mazhab ke naam par kyun baante ghar, rishte, raste,
Kashmir ki cheekhen bhi ab sawaal karne lagi hain sakht-e.

4.
हर सुबह यहां दर्द की चिट्ठी लाती है,
हर शाम कोई माँ आँसुओं से नहाती है।
गूंजती हैं सायरनों में सिसकियाँ बेनाम,
कब होगा कश्मीर को फिर अमन का पैग़ाम?

Har subah yahaan dard ki chhithi laati hai,
Har shaam koi maa aansuon se nahaati hai.
Goonjti hain saayron mein siskiyaan be-naam,
Kab hoga Kashmir ko phir aman ka paighaam?

5.
ये वादी नहीं अब कैदख़ाना लगती है,
हर दीवार पर सिसकी छपी सी दिखती है।
बच्चों की हँसी भी यहाँ गुम है कहीं,
क्या यही सिला है कश्मीर की वफ़ाओं का यहीं?

Ye waadi nahin ab kaidkhana lagti hai,
Har deewar par siski chhapi si dikhti hai.
Bachchon ki hansi bhi yahaan gum hai kahin,
Kya yahi sila hai Kashmir ki wafaon ka yahin?

जो कफ़न में लिपटी माओं की ममता है,
वो चुपचाप तिरंगे से कुछ कहती है।
सियासत के खेल में जो बिछते हैं लाशें,
कश्मीर की मिट्टी आज चीख़ उठती है।

Jo kafan mein lipti maaon ki mamta hai,
Wo chupchaap tirange se kuch kehti hai.
Siyasat ke khel mein jo bichte hain laashen,
Kashmir ki mitti aaj bhi cheekh uthti hai.

7.
नदी भी सुनी-सुनी बहती है यहाँ,
हर कोना खामोश सा लगता है जहाँ।
ये कश्मीर है जनाब, जन्नत से कम नहीं,
पर ज़ुल्म ने इसे कब्रिस्तान बना दिया कहीं।
Nadi bhi suni-suni bahti hai yahaan,
Har kona khaamosh sa lagta hai jahaan.
Ye Kashmir hai janaab, jannat se kam nahin,
Par zulm ne ise kabristaan bana diya kahin.

8.
जहाँ चाँदनी भी डरकर उतरती है,
वहाँ इंसानियत क्यों रोज़ मरती है?
कभी देखो इन आँखों की नमी को,
कश्मीर की रूह भी सिसकती है ग़मी को।

Jahaan chaandni bhi darkar utarti hai,
Wahaan insaaniyat kyon roz marti hai?
Kabhi dekho in aankhon ki nami ko,
Kashmir ki rooh bhi sisakti hai ghammi ko.

9.
हमने तो चाहा था अमन का पैग़ाम,
मगर मिला हर मोड़ पे सिर्फ़ इल्ज़ाम।
ग़लतफहमियों ने रिश्ते तोड़े हैं यहाँ,
कश्मीर ने हर आँसू अकेले ही ओढ़े हैं यहाँ।
Humne to chaaha tha aman ka paighaam,
Magar mila har mod pe sirf ilzaam.
Galatfehmiyon ne rishte tode hain yahaan,
Kashmir ne har aansoo akele hi odhe hain yahaan.

10.
अब बच्चे भी खेलते नहीं मैदानों में,
डर घुस गया है उनके मासूम गुनगुनाओं में।
ये वादी अब खामोशियों की कहानियाँ कहती है,
कभी हँसती थी जो, अब सिसकियाँ सहती है।

Ab bachche bhi khelte nahin maidaanon mein,
Dar ghus gaya hai unke maasoom gungunaon mein.
Ye waadi ab khaamoshiyon ki kahaaniyan kehti hai,
Kabhi hans-ti thi jo, ab siskiyaan sahti hai.

11.
गूंजती नहीं अब अज़ान भी खुलकर,
हर आवाज़ डरती है यहाँ बोलकर।
क्या इतना बड़ा जुर्म है सुकून माँगना,
जो हर सुबह यहाँ खून से हो अलविदा कहना?

Goonjti nahin ab azaan bhi khulkar,
Har aawaaz darti hai yahaan bolkar.
Kya itna bada jurm hai sukoon maangna,
Jo har subah yahaan khoon se ho alvida kehna?

12.
कभी जन्नत थी ये वादी, अब जख़्मों का घर है,
हर दिल में डर है, हर गली में कहर है।
इतिहास रो रहा है अपने ही पन्नों पर,
जब-जब कोई मासूम गिरा बंदूक़ों के चक्करों प
Kabhi jannat thi ye waadi, ab zakhmon ka ghar hai,
Har dil mein dar hai, har gali mein qahar hai.
Itihaas ro raha hai apne hi pannon par,
Jab-jab koi masoom gira bandookon ke chakkaron par.

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