ZAKHM SHAYARI

कौन कम्भख्त  मोहबत्त में जख्मों का हिसाब रखता है   मोहबत्त का नशा सर चढ़ के बोलता है 💔💔💔💘

उसकी आदत हो गई  जख्म देने की 💔💔 खता  मेरे दिल की है  मोहबत्त  करने की

किसने  सोचा था मोहबत्त  का ये अंजाम होगा  आखँ में अश्क़  दिल   इस कदर जख्मी होगा💔

किसने  सोचा था मोहबत्त  का ये अंजाम होगा  आखँ में अश्क़  दिल   इस कदर जख्मी होगा💔

मोहबत्त में तबाही के  निशानी बाकी हैं  दिल पर लगे जख्मो💔 के निसान बाकी हैं

इकतरफा मोहबत्त का  यही अंजाम होता  है  जख्म देने वाला 💔 मुस्काता है 💔

दुआ करो  ये दिल उसे भूल जाए    दिल में  लगा जख्म  भर जाए 💔

तेरी बेवफाई  से इस कदर  जख्मी हो गए हैं 💔💔 भरी दुनिया में तन्हा हो गए हैं

कौन  यहां तेरे दिए जख्मो💔  का हिसाब रखता है    तुझे याद करने से दिल   फुरसत  कहाँ  देता है

मत पूछो   मोहबत्त में कितने        जख्म खाए हुए हैं 💔💔       जिसे  दिल वो जान से चाहा        उसी के हाथों तबाह हुए हैं

दर्द से सीना जल उठता है 💔💔 जब जब तेरी बेवफाई का जख्म उभरता है