महोंबत्त तड़फ कसक तनहाई महोंबत्त नाम है दूजा जुदाई महोंबत्त अशकों का एक फ़साना जुदाई
इक इक पल का यहाँ हिसाब क्या करू मैं इस दिल के जख्मों का किस्सा क्या कहूँ मैं ये सब से जागते सितारों से पूछ ले दर्द ए जुदाई का गम क्या कहूँ अपने लबों से
बेपनाह मोहबत्त कर के भी जो जुदा हो जाते हैं मत पूछो जीते जी मर जाते हैं
जुदाई में बहते अश्क कैसे छिपाऊं कोई बता दे उसे केसे भुलाऊं
उसे क्या पता जुदाई का गम क्या है उसने मोहबत्त नही दिल्ल्ग्गी की है
वो हमसे जुदा होकर खुस है हम उसे खुस देख कर चुप हैं
उससे जुदा होकर भी उसकी तलाश है जाने क्यों उसके दीदार की प्यास है