सफलता का सही अर्थ दौलत कमाना
नही बल्कि सही शुद्ध सात्विक जीवन जीना है
हमने जो कुछ भी अर्जित किया
उसे सही कार्य में लगाना ही पुन्य है
सत्य अकेला ही काफी होता है झूठ से लड़ने को
रास्ते बनाने पड़ते हैं मजिल फतह करने को
बने बनाए रास्तों से भीड़ तक पहुच सकते हो
इश्वर को कुछ अर्पण करने क
लायक है तो बस गीता को जीवन में उतार लो
यही जप तप और यज्ञ है
यदि मनुष्य जीवन में ज्ञान नही है
उसका पशु के समान जीवन होना तय है
भीड़ का हिस्सा बनोगे तो खुद को साबित नही कर सकोगे