:गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः🙏🙏

अठारह पूरण और वेदों के रचियता महर्षि वेदव्यास का जन्म असाड पूर्णिमा को हुआ था तभी से  गुरुपूर्णिमाँ मनाई जाती है

गुरु  का अर्थ है  जो  अज्ञान रूपी अन्धकार   से ज्ञान रूपी प्रकास की तरफ ले जाए  महर्षि वेदव्यास ने वेदों पुराणों की रचना से  अज्ञान का अंधकार दूर किया था

गुरु की महिमा का बखान करते हुए  संत कवीर  लिखते हैं   गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागुन पाय  बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट। अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥

गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥ अर्थ : गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, यह सब संच जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है. लेकिन गुरु शिष्य को अपने समान महान बना देता है.

गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥ अर्थ : गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, यह सब संच जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है. लेकिन गुरु शिष्य को अपने समान महान बना देता है.

गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान। तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥ अर्थात  गुरु के समान कोई दाता नहीं और शिष्य के सदृश याचक नहीं. गुरु ने त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान और दान दे दिया.

गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥ अर्थ : गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, यह सब संच जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है. लेकिन गुरु शिष्य को अपने समान महान बना देता है.

संत कवीर  कहते हैं सद्गुरु ने मुझ पर प्रसन्न होकर एक रसपूर्ण वार्ता सुनाई जिससे प्रेम रस की वर्षा हुई और मेरे अंग-प्रत्यंग उस रस से भीग गए। सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।  बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥

गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥ अर्थ : गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, यह सब संच जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है. लेकिन गुरु शिष्य को अपने समान महान बना देता है.

संत दादू दयाल कहते हैं मेरे सतगुरु मुझे सहज भाव से मिले। मुझे अपने गले से लगा लिया। उनकी दया से मेरे हृदय में ज्ञान रूपी दीपक प्रज्वलित हो गया अर्थात् उसके प्रकाश से मेरा अज्ञानरूपी अंधकार दूर हो गया। दादू सतगुरु सौं सहजैं मिल्या, लीया कंठ लगाइ।  दया भई दयाल की, तब दीपक दीया जगाइ॥

गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥ अर्थ : गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, यह सब संच जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है. लेकिन गुरु शिष्य को अपने समान महान बना देता है.

संत  तुलसीदास  कहते हैं सच्चे साधु और सद्गुरु की सेवा करके उनसे श्री राम के तत्त्व को समझो और सीखो, तब श्री राम की भक्ति स्थिर हो जाएगी; क्योंकि बचपन में सीखा हुआ तैरना फिर नहीं भूलता। सेइ साधु गुरु समुझि सिखि, राम भगति थिरताइ।  लरिकाई को पैरिबो, तुलसी बिसरि न जाइ॥

गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥ अर्थ : गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, यह सब संच जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है. लेकिन गुरु शिष्य को अपने समान महान बना देता है.

संत परशुरामदेव कहते हैं  सतगुरु की महिमा से सारे कलंक धुल जाते हैं जेसे पर्स के छूने से लोहा स्वर्ण बन जाता है  साधु समागम सत्य करि, करै कलंक बिछोह।  परसुराम पारस परसि, भयो कनक ज्यों लोह॥

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गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त। वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥ अर्थ : गुरु और पारस पत्थर में अन्तर है, यह सब संच जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है. लेकिन गुरु शिष्य को अपने समान महान बना देता है.

जमाल कहते हैं शरीर को गोटें (मोहरें) और प्रीति के पासे हैं, सतगुरु दांव (चाल) बता रहे हैं; और चौपड़ का खेल खेल रहा हूँ। या तन की सारैं करूँ, प्रीत जु पासे लाल।  सतगुरु दाँव बताइया, चौपर रमे जमाल॥