शायरी जो दिल को छू जाए
फिरता है चाँद भी किसी तलाश मे हर रोज निकलता है नीले आकाश मे
ए दिल कभी कभी एसा भी होता है अश्क बहते नहीं पर दिल बहुत रोता है जिंदा तो हैं मौत का गूमा होता है
अक्सर दुनियाँ के हुजूम से डरती हूँ खुद से ही खुद की बातें करती हूँ भीड़ मे खुद को तन्हा महसूस करती हूँ मैं महफ़िल मे तनहाई तलास करती हूँ
कह नहीं पाए हम जुबां से हाल ए दिल उनसे एक नज़्म इजहार ए महोबत्त सुना दी हमने भरी महफ़िल मे