अजनबी  शायरी

किसी अजनबी से मोहबत्त करने की खता कर बैठे      अपना  सब्रो करार भुला बैठे

जब से अजनबी से  मुलाकात हुई     होश नहीं हमें कब दिन हुआ कब रात हुई

जाने क्या राब्ता है उस अजनबी से   जाता नहीं है मिरे दिल से

कभी किसी अजनबी से मोहबत्त न करना      जिंन्दगी  इंतजार  बन जाएगी वरना

अजनबी  से मोहबत्त करने की खता  हो गयी      जिंदगी  जैसे एक सजा  बन गई

कल तक  हमसे मोहबत्त जताते थे जो          आज अजनबी की तरह पेश आते हैं वो

तू अजनबी है ये जानते हैं हम          मगर  इस दिल को कैसे समझाएं हम

जिंदगी   का सफर   तन्हा गुजरा है  कभी अपनों ने तो कभी अजनबी ने दिल तोडा है

जब से मुझसे बिछड़ा वो अजनबी          पल भर को भी सुकून  आया न कभी

आया न कभी फिर लौट के अजनबी         मोहबत्त में तन्हा छोड़ गया वो अजनबी