जब से अजनबी से मुलाकात हुई होश नहीं हमें कब दिन हुआ कब रात हुई
जाने क्या राब्ता है उस अजनबी से जाता नहीं है मिरे दिल से
अजनबी से मोहबत्त करने की खता हो गयी जिंदगी जैसे एक सजा बन गई
कल तक हमसे मोहबत्त जताते थे जो आज अजनबी की तरह पेश आते हैं वो
तू अजनबी है ये जानते हैं हम मगर इस दिल को कैसे समझाएं हम
जिंदगी का सफर तन्हा गुजरा है कभी अपनों ने तो कभी अजनबी ने दिल तोडा है
जब से मुझसे बिछड़ा वो अजनबी पल भर को भी सुकून आया न कभी