हर मुस्कान के पीछे, दर्द छुपा लिया, शिकवे किससे करें सोच के दिल रो दिया 

भीड़ में खुद को तन्हा पाया, दिल ने हर दर्द को  अपना बनाया।

पलकों पर सपने, आंसुओं में धुल गए, जिंदगी से शिकवा ये है, क्यों मेरे सपने रूठ गए।

बचपन की मासूमियत खो गई, जिंदगी  क्यों ये  बेवजह हो गईं।

दिल ने हर दर्द सहा, मुस्कुराहटों में छिपाया, मेरा दर्द किसी को समझ न आया

मोशियों का भी एक शोर होता है, दिल चुपचाप सुनता है

बचपन की हंसी अब एक कि स्सा बन गई, शिकायत ये है, क्यों सादगी सजा  बन गई।

चाहत थी एक पल की  राहत की, शिकायत है, क्यों  प्यास रह गयी  जिन्दगी की

हर सुबह उम्मीद जगाती है, हर शाम उसे तोड़ जाती है,

जिंदगी से शिकवा यही है,   क्यूँ  खुशी दर्द में बदल जाती है।

ख्वाबों की गलियों में, हम अकेले भटकते रहे, जिंदगी से शिकवा है, क्यों अपने  भी पराए लगे।

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चाहा था किसी का साथ, पर तन्हाई ही हमराह बनी, जिंदगी से शिकवा है, क्यों  तू बेवफा निकली