ख्वाबों की गलियों में, हम अकेले भटकते रहे, जिंदगी से शिकवा है, क्यों अपने भी पराए लगे।
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चाहा था किसी का साथ, पर तन्हाई ही हमराह बनी, जिंदगी से शिकवा है, क्यों तू बेवफा निकली