चंद्रघंटा माँ
आज है माता के तीसरे स्वरूप चन्द्र घंटा की पूजा
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
माता चंद्रघंटा की कथा
देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला. असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवाताओं के इंद्र. महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्वर्गलोक पर राज करने लगा।
इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें बंधक बनाकर स्वयं स्वर्गलोक का राजा बन गया है। देवाताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्याचार के कारण अब देवता पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं और स्वर्ग में उनके लिए स्थान नहीं है।
यह सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर को अत्यधिक क्रोध आया. क्रोध के कारण तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई. देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई. यह दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी।
तभी वहां एक देवी का अवतरण हुआ. भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया. इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र शस्त्र सजा दिए. इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया. सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया।
देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं. उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ गया कि अब उसका काल आ गया है. महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा. अन्य देत्य और दानवों के दल भी युद्ध में कूद पड़े।
देवी ने एक ही झटके में ही दानवों का संहार कर दिया. इस युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्य बड़े दानवों और राक्षसों का संहार मां ने कर दिया. इस तरह मां ने सभी देवताओं को असुरों से अभयदान दिलाया।
माँ चंद्रघंटा कवच
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने। श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥ बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं। स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥ कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
माँ चंद्रघंटा की आरती
जय माँ चन्द्रघंटा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥ चन्द्र समाज तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समाती॥ क्रोध को शांत बनाने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली॥ मन की मालक मन भाती हो। चंद्रघंटा तुम वर दाती हो॥ सुन्दर भाव को लाने वाली।
हर संकट में बचाने वाली॥ हर बुधवार को तुझे ध्याये। श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए॥ मूर्ति चन्द्र आकार बनाए।
शीश झुका कहे मन की बाता॥ पूर्ण आस करो जगत दाता। कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥
माँ चंद्रघंटा स्तोत्र पाठ
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्। अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्। धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥ नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्। सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥