**तुझसे क्या शिकवा करूं, तू अपना था ही कब…**
**तेरे होने का भरम ही काफी था, अब तो तुझसे कोई गिला भी नहीं रहा…**
**गैरों से गिला नहीं होती, ज़ख़्म तो अपनों ने दिए हैं…**
**तेरी बेरुखी का भी गिला नहीं, बस अपना इंतज़ार खलता है…**
**गिला भी तुमसे, उम्मीद भी तुमसे, और मोहब्बत भी…**
क्या गिला करूं तेरी बेवफ़ाई से, शायद तुझे मोहब्बत ही नहीं थी मुझसे…