दिल में गिला है, मगर मोहब्बत भी है

**तुझसे क्या शिकवा करूं, तू अपना था ही कब…**

**तेरे होने का भरम ही काफी था, अब तो तुझसे कोई गिला  भी नहीं रहा…**

**गैरों से गिला नहीं होती, ज़ख़्म तो अपनों ने दिए हैं…**

गिला  किससे करें **जिसे अपना समझा, आज वही अजनबी सा लगता है…**

**गिला बस इतना है कि, तुम समझे ही नहीं हमें…**

**तेरी बेरुखी का भी गिला नहीं, बस अपना इंतज़ार खलता है…**

**तुझसे कोई गिला  नहीं हैं, बस कुछ अधूरी उम्मीदें हैं…**

**गिला भी तुमसे, उम्मीद भी तुमसे, और मोहब्बत भी…**

क्या गिला करूं तेरी बेवफ़ाई से, शायद तुझे मोहब्बत ही नहीं थी मुझसे…

गिला तो तब हो, जब कोई अपना हो, तू तो बस एक फ़साना था…

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गिला है खुद से, जो तुझसे मोहब्बत कर बैठे…