ये दूरियां
कभी पास होकर भी दूर लगते हो, तेरी खामोशी में हज़ार फ़ासले छुपे होते हैं।
तेरे बिना सब अधूरा लगता है, जैसे रास्तों से मंज़िल रूठी हो।
दूरी का ग़म नहीं, बस तेरा न होना खलता है, दिल तुझसे मिलने को मचलता है।
इतनी दूरियां भी ठीक नहीं होतीं, कि मिलने की तमन्ना ही मर जाए।
मोहबत्त निभाते -निभाते कहीं खो गए हम, रिश्तों की भीड़ में तन्हा रह गए हम।
तेरी यादों के साये में जी रहा हूँ, दूरियों के शहर में तन्हाई का मुसाफ़िर बना हूँ
दूर रहकर भी कोई इतना अपना कैसे हो सकता है? बस मोहब्बत ऐसी ही दीवानगी है।