ये दूरियां

कभी पास होकर भी दूर लगते हो, तेरी खामोशी में हज़ार फ़ासले छुपे होते हैं।

तेरे बिना   सब  अधूरा लगता है, जैसे रास्तों से मंज़िल रूठी हो।

मिलते हैं रोज़ ख्वाबों में मगर, हक़ीक़त में दूरियों का सिलसिला बाकी है।

दूरियों का हिसाब कौन रखे, हमने तो चाहा था उम्र भर के लिए उसे

दूर रहकर भी तुझसे जुड़ा हूँ मैं, जैसे सागर से बादल का रिश्ता। है

दूरी का ग़म नहीं, बस तेरा न होना खलता है, दिल  तुझसे मिलने को मचलता है।

चाहे दूर रहो, फिर भी पास हो, हर धड़कन में, हर साँस में हो।

कभी वक़्त मिले तो लौट आना, दूरीयाँ मिटाने का मन अब भी है।

इतनी दूरियां भी ठीक नहीं होतीं, कि मिलने की तमन्ना ही मर जाए।

मोहबत्त निभाते -निभाते कहीं खो गए हम, रिश्तों की भीड़ में तन्हा रह गए हम।

तेरी यादों के साये में जी रहा हूँ, दूरियों के शहर में तन्हाई का मुसाफ़िर बना हूँ

दूर रहकर भी कोई इतना अपना कैसे हो सकता है? बस मोहब्बत ऐसी ही दीवानगी है।