जो दर्द मैंने छुपाया, वही इल्ज़ाम बन गया

तू भी शामिल था महफिल में, फिर भी कसूरवार मैं बना।

तोहमतें लगीं ऐसे, जैसे मोहब्बत की कोई क़ीमत ही न हो।

तोहमतों का सिलसिला इतना चला, के खुद से भी यकीन उठ गया।

हर बात पे सफाई देनी पड़ी, जैसे इश्क़ कोई जुर्म हो।

तोहमतों की इस भीड़ में, सच्चाई कहीं कोने में रो रही है।

तेरा नाम लूँ तो गुनाह, न लूँ तो बेवफ़ा कहलाऊँ।

एक बार पूछ लेता तो सच कह देता, अब तो झूठ पर भी यकीन कर लिया तूने।

हमने दर्द सह लिया दिल में, पर वो तोहमत दे गया  महफिल में।

हमने मोहब्बत की थी खामोशी से, तोहमतें मिलीं शोर की तरह।

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बिना मुकदमे के सज़ा दी गई, मोहब्बत के नाम पर तोहमत लगी।

मैं तो चुप था अपने दर्द के साथ, मगर लोग चीख-चीख कर मुझे गुनहगार कहते रहे।