तू भी शामिल था महफिल में, फिर भी कसूरवार मैं बना।
तोहमतें लगीं ऐसे, जैसे मोहब्बत की कोई क़ीमत ही न हो।
तोहमतों की इस भीड़ में, सच्चाई कहीं कोने में रो रही है।
एक बार पूछ लेता तो सच कह देता, अब तो झूठ पर भी यकीन कर लिया तूने।
बिना मुकदमे के सज़ा दी गई, मोहब्बत के नाम पर तोहमत लगी।