गुमनाम थी वो मोहब्बत, मगर सच्ची थी... जिसे हम निभा गए, मगर दुनिया जान न सकी।
उसका नाम कभी ज़ुबां पर नहीं आया नही मगर उसकी याद हर धड़कन में समा गया ।
हम उसकी तस्वीर तक न रख सके, क्योंकि हमारी मोहब्बत गुमनाम थी।
उसकी हँसी किसी और के नाम थी, और हम आंसुओं में उसकी मुस्कान ढूंढ़ते रहे।
मोहब्बत की वो कहानी अधूरी रही, जिसे सिर्फ शायरी में मुकम्मल किया हमने।
ना कोई मुलाकात, ना कोई अल्फाज़, फिर भी दिल ने सिर्फ उसी को पुकारा।
हम खामोश रहे, वो भी कुछ ना बोले, शायद यही हमारी मोहब्बत की जुबां थी।
वक़्त बीत गया, लोग बदल गए, मगर उसकी यादें वहीँ रह गईं।
गुमनाम था इश्क़… ना नाम था, ना अंजाम था।
जिसे चाहा दिल से, उसे दुनिया से छुपा लिया।
लिखते रहे उसे हर शायरी में, मगर नाम कभी ज़ाहिर ना किया।