ऐतबार शायरी

तुझसे सीखायत  खता मेरी है तूने दिलग्गी की मैंने तो मोहब्बत की है तुझे गुनहगार क्यों कौन तेरा ऐतबार क्यों कर करूँ

कत्ल तो होना लाजमी  था मोहबत्त में ऐतबार का  सजा मोहब्बत की  जुदाई  थी यही तो हस्र होना था प्यार का

मुझे तुझपे  ऐतबार करने की सजा तो मिली  हाँ तुझसे प्यार की सजा तो मिली

मिरा दर्द वो न समझ सका   किसी गैर के लिए  मेरा कत्ल कर चला

किस हद तक किया था  उसे प्यार  और उसका ऐतबार   वो हमें बेवफाई का जहर देता रहा और ऐतबार का कत्ल होता रहा

सच्ची मोहब्बत में न इजहार होता है  ना इकरार होता है बस प्यार और ऐतबार  होता है

सच्ची मोहब्बत में न इजहार होता है  ना इकरार होता है बस प्यार और ऐतबार  होता है

मोहब्ब्त के सफर में कभी रूठ जाना   कभी मना लेना मान   जाना     सबकुछ  करना    भूल के भी ऐतबार का कत्ल मत करना

ऐतबार  किसका करें यहां  हर शख्स  नकाब में है यहां

कर बैठे  इक बेवफा  से प्यार  अब न करेगा दिल किसी का ऐतबार

बहुत मुश्किल से ऐतबार की डोर बधती  है      किसी बेवफा  से प्यार  में   दिल टूट  जाता है