एक तेरा ख्याल दिल से जाता नहीं  बिन तेरे एक पल भी चैन  आता नहीं

गुनगुनाती है जुबां अक्सर तेरा नाम   ये हवाएं लाती है तेरा पैगाम

न मंजर है एसा  न जाम कोई  तेरी याद भुला दे एसी सूरतन कोई

अपने लफ्ज  किसी  को इजहार   कर यूँ जाया न कर

देख कर खामोसी  मेरी  दरिया  का पानी  भी   रो दिया  छलककर  साहिल का दामन भिगो दिया

सीसे  की   तरह  बिखर गया   वजूद मेरा  मे  हर एक टुकड़े मे देखा अक्ष अपना तन्हा हूँ हर अक्ष मे

इश्क की  कुछ शर्त जरूरी है  हाँ  महोंबत्त मे वफ़ा जरूरी है

हुस्न और इश्क की जिद है   या हुस्न  रहेगा  या रहेगी  वफ़ा

महोबत्त तू कभी मुक्कमल न हुई  कभी वफ़ा से कभी जुदाई से  तन्हा  रही

सुनो  अच्छा लगता है   तेरे साथ मुस्कराना

आख से दूर जाना अलग बात है    आदत इश्क की नहीं भूल जाने की

हम इस जहां में मिले न  मिले गम नहीं  रूह  तो रूह से मिल गई   फिर मिलेंगे उस जहां में कहीं