मां कालरात्रि का स्वरूप
मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, इनका वर्ण अंधकार की भाँति काला है, केश बिखरे हुए हैं, कंठ में विद्युत की चमक वाली माला है, माँ कालरात्रि के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल व गोल हैं, जिनमें से बिजली की भाँति किरणें निकलती रहती हैं, इनकी नासिका से श्वास तथा निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं. माँ का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए.
माँकालरात्रि की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार रक्त बीज नाम का एक दैत्य था जिसने न केवल मनुष्य बल्कि देवताओं के जीवन को भी संकट में डाल रखा था। रक्त बीज को वरदान प्राप्त था की उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरते ही उसके जैसा ही एक और दानव पैदा हो जाएगा। देवता इस बात से बहुत दुखी थे।
। तब मां कालरात्रि और रक्त बीज के मध्य युद्ध शुरू हुआ तो देवी उसका संहार करके उसका रक्त धरती पर गिरने से पहले ही उसे पी लेती थी। इस रूप में मां कालरात्रि कहलायीं।
माँकालरात्रि का स श्लोक ”एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि।।”
माता कालरात्रि का कवच मन्त्र ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि। ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥ रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
माँ कालरात्रि स्त्रोत हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती। कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥ कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी। कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥ क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी। कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
माँकालरात्रि का प्रार्थना मन्त्र एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा। वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
माँ कालरात्रि का ध्यान मन्त्र करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्। कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥ दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्। अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥ महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा। घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥ सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्। एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
कालरात्रि आरती जय-जय-महाकाली। काल के मुह से बचाने वाली दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतार।। पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा। खडग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली।। कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा।
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी।। रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना। ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी।। उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली माँ जिसे बचाबे। तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय।।
माँकालरात्रि की पूजा का महत्व
माँकालरात्रि की दया आप सभी पर सदा बनी रहे भक्तो जय माता दी🙏🙏