r दिल्लगी शायरी/ दिल्लगी जब मोहब्बत का दर्द बन जाए » Dard E Jazbaat दिल्लगी शायरी/ दिल्लगी जब मोहब्बत का दर्द बन जाए दिल्लगी शायरी/ दिल्लगी जब मोहब्बत का दर्द बन जाए

दिल्लगी शायरी/ दिल्लगी जब मोहब्बत का दर्द बन जाए

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दिल्लगी शायरी/ दिल्लगी जब मोहब्बत का दर्द बन जाए-कभी-कभी दिल्लगी का खेल दिल को बहुत महँगा पड़ जाता है। इंसान जब किसी से दिल्लगी करता है, तो वह सिर्फ एक हल्की-फुल्की हंसी-मजाक या समय बिताने के लिए हो सकती है, लेकिन यह दिल से जुड़ी भावनाओं के लिए भारी कीमत चुकाने का कारण बन सकती है। दिल्लगी के इन खेलों में कभी-कभी दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं, और यही दिल्लगी मोहब्बत के दर्द में बदल जाती हैदिल्लगी कभी-कभी इंसान को एक ऐसा अहसास देती है, जो मोहब्बत का रूप ले लेता है। कुछ लोग इसे खेल समझकर दूसरों के दिल से दिल्लगी करते हैं, लेकिन जब यह दिल्लगी मोहब्बत बनकर उनके अपने दिल को चोट देती है, तब उन्हें एहसास होता है कि यह मज़ाक नहीं था। इस पोस्ट में, हमने दिल्लगी से जुड़ी उन भावनाओं को शायरी के ज़रिये बयां किया है, जो दिल को छू जाती हैं।

दिल्लगी शायरी
दिल्लगी शायरी हिंदी
दिल्लगी शायरी रेख़्ता
दिल्लगी शायरी फोटो

दिल्लगी शायरी/ दिल्लगी जब मोहब्बत का दर्द बन जाए

दिल्लगी शायरी/ दिल्लगी जब  मोहब्बत का दर्द बन जाए
दिल्लगी शायरी/ दिल्लगी जब मोहब्बत का दर्द बन जाए

1.

जो सोचा था दिल्लगी, वो सच्चा प्यार बन गया,
जो हंसी में था, अब वही हर ख्वाब बन गया।

Jo socha tha dillagi, wo sachcha pyaar ban gaya,
Jo hansi mein tha, ab wahi har khwab ban gaya.

2.

दिल्लगी समझकर जो नजरअंदाज किया,
वही मोहब्बत बनकर दिल में बस गया।

Dillagi samajhkar jo nazarandaz kiya,
Wahi mohabbat bankar dil mein bas gaya.

3.:
दिल्लगी में जो ख्वाब बुना, वो टूटकर बिखर गया,
प्यार का दर्द दिल में ऐसे गहर गया।

Dillagi mein jo khwab buna, wo tootkar bikhar gaya,
Pyaar ka dard dil mein aise gehar gaya.

4.
दिल्लगी का खेल खेलते-खेलते,
मोहब्बत के जाल में फंस गए।

Dillagi ka khel khelte-khelte,
Mohabbat ke jaal mein phas gaye.

5.

सोचा था यह दिल्लगी बस वक्त का खेल है,
अब समझा, दिल की यह सबसे बड़ी जेल है।Hinglish:
Socha tha yeh dillagi bas waqt ka khel hai,
Ab samjha, dil ki yeh sabse badi jail hai.

6.

जिसे समझा था मजाक, वही जिंदगी का सबक बन गया,
दिल्लगी करते-करते दिल मेरा टूट गया।

Jise samjha tha mazaak, wahi zindagi ka sabak ban gaya,
Dillagi karte-karte dil mera toot gaya.

7.
दिल्लगी में छिपा एक गहरा राज़,
जब खुला तो दिल पे छा गया साज़
Dillagi mein chhupa ek gehra raaz,
Jab khula to dil pe chha gaya saaz.

8.

वो दिल्लगी थी या मोहब्बत का इम्तिहान,
दिल कहता है, ये थी दिल की जान।

Wo dillagi thi ya mohabbat ka imtihaan,
Dil kehta hai, ye thi dil ki jaan.

9.

दिल्लगी में जो मिला था सुकून,
मोहब्बत में वही बन गया जुनून।

Dillagi mein jo mila tha sukoon,
Mohabbat mein wahi ban gaya junoon.

10.

दिल्लगी के पल थे हंसी के बहाने,
अब मोहब्बत के दर्द में बदल गए अफसाने।

Dillagi ke pal the hansi ke bahaane,
Ab mohabbat ke dard mein badal gaye afsaane.

11.
जो कभी थी सिर्फ दिल्लगी की बात,
अब बन गई है दिल का जज़्बात।
खेल जो हंसी में खेला था,
अब दिल ने उसे अपना कह डाला।

12.
दिल्लगी में था जो फकत एक पल,
अब वही बन गया मेरी उम्र का हल।
जिसे नजरअंदाज कर मुस्कुराया था,
अब उसी की यादों में रो दिया।

13.
दिल्लगी करते-करते जब दिल भर आया,
मोहब्बत का दर्द समझ न आया।
जिसे समझा था बस एक मज़ाक,
अब वही बन गया दिल का सच्चा हिसाब।

14.
जो दिल्लगी थी, अब सज़ा बन गई,
मोहब्बत की राहें तन्हा बन गई।
दिल कहता है ये तेरा खेल नहीं,
अब ये मेरी मोहब्बत की मंजिल बन गई।

15.
दिल्लगी में जो दिखा था सपना,
अब वो टूटा और दिल का गहना।
सोचा था बस वक्त गुजार लेंगे,
पर अब तेरी यादों में सारा वक्त बर्बाद करेंगे।

16.
दिल्लगी के नाम पर दिल को लूटा गया,
मोहब्बत का मतलब तब समझ आया।
जिसके साथ थी बस हंसी की बातें,
अब वो मेरे दिल की सब रातें।

17.
जो हंसी में था, अब सुकून में नहीं,
दिल्लगी का हर लम्हा अब चैन में नहीं।
दिल रोता है हर बार तुझे याद कर,
मोहब्बत का दर्द ये दिल सह न सका।

18.
दिल्लगी से शुरू हुआ जो सफर,
मोहब्बत में बदल गया वो जहर।
दिल ने जिस पर हंसकर प्यार किया,
वही अब मेरी सांसों का तलबगार हुआ।

19.
दिल्लगी के वो पल अब याद आते हैं,
हर बार तेरा चेहरा रुला जाते हैं।
मोहब्बत का दर्द अब समझा है मैंने,
जब खुद को हर बार अकेला पाया है मैंने।

20.
जो खेल था, अब कहानी बन गया,
मोहब्बत का हर जख्म पुराना बन गया।
दिल्लगी के नाम पर जो दिल लगाया था,
आज उसी ने हर ख्वाब जलाया था।

21.
दिल्लगी ने दिल को जो तड़पाया,
मोहब्बत का मतलब तब समझ आया।
जिसे सोचा था हंसी का एक खेल,
अब वो बन गया मेरी तन्हाई का मेल।

22.
दिल्लगी करते-करते ये हाल हो गया,
दिल मोहब्बत में बेमिसाल हो गया।
जिसे समझा था वक्त की बात,
अब वो बन गई मेरी हर रात।

23.
दिल्लगी का वो हंसी भरा सफर,
अब बदल गया मोहब्बत के जहर।
दिल ने जिसे हल्के में लिया,
अब उसी ने मुझे गहराई में गिरा दिया।

24.
दिल्लगी के लम्हों ने जो हंसी दी थी,
वही अब मेरी आंखों में नमी दी थी।
मोहब्बत का हर दर्द सह लिया,
पर दिल्लगी ने जो दिया, वो कह न सका।

25.
जो कभी थी दिल्लगी, वो मोहब्बत बन गई,
दिल की हर धड़कन अब कहानी बन गई।
जिसे सोचा था सिर्फ एक मज़ाक,
अब वही है मेरे दिल की असली किताब।

26.
जिसे समझा था एक मुस्कान का ख्वाब,
वो बन गया अब दिल का बड़ा हिसाब।
दिल्लगी की राहों में जब बढ़ा कदम,
मोहब्बत के जख्मों ने किया बेदम।

27.
दिल्लगी का गुनाह मैंने कर लिया,
हर खुशी को दर्द में बदल दिया।
जिसे खेल समझा, वो जान बन गई,
अब हर सांस तुझसे ही बंध गई।

28.
तेरी दिल्लगी ने मेरा चैन चुराया,
मोहब्बत का दर्द हर पल दोहराया।
जिसे हंसी का हिस्सा समझा था,
वो अब मेरी तन्हाई का किस्सा बन गया।

29.
दिल्लगी के नाम पर जब दिल हारा,
मोहब्बत का दर्द हर सांस ने पुकारा।
जिसे छोड़ा था हल्के में कभी,
अब उसी की यादों ने सुलगाया है अभी।

30.
तूने दिल्लगी में मुझे भुला दिया,
मैंने मोहब्बत में खुद को मिटा दिया।
तेरी हंसी से जो बना था रिश्ता,
अब वो बन गया दर्द का रास्ता।

31.
दिल्लगी का वो खेल था आसान,
पर मोहब्बत में हुई हर बात परेशान।
जिसे सोचा था बस यूं ही गुजर जाएगा,
अब वही दर्द हर रात जगाएगा।

32.
दिल्लगी करते-करते ये हाल हो गया,
हर खुशी का अब मलाल हो गया।
जिसे चाहा सिर्फ वक्त बिताने को,
अब उसी के बिना मरने का ख्याल हो गया।

33.
जो दिल्लगी थी, वो जख्म बन गई,
हर ख्वाब अब राख बन गई।
दिल ने जिसे कभी खेल समझा,
आज उसी ने मोहब्बत का सबक सिखा दिया।

34.
तेरी दिल्लगी ने मेरा दर्द बढ़ाया,
हर हंसी ने मेरे आंसू छुपाया।
जिसे समझा था पल भर का साथी,
अब वही बन गया मेरी रातों का साथी।

35.
दिल्लगी का दर्द अब दिल में बसा है,
हर खुशी का चेहरा अब झूठा सा लगा है।
जिसने मुस्कुराकर दिल लगाया,
अब उसी ने हर खुशी को जलाया।

36.
जिसे समझा था सिर्फ एक मज़ाक,
अब वही है मेरे दिल का खाका।
दिल्लगी के लफ्ज़ों में जो छुपा था,
वो मोहब्बत का दर्द अब उभर आया।

37.
तेरी दिल्लगी का जादू चला,
दिल मोहब्बत में ऐसा खो गया।
जिसे समझा था बस एक पल,
अब वही बन गया मेरी हर हलचल।

38.
दिल्लगी करते-करते जो रिश्ता बना,
अब वही बन गया मेरा दर्दाना।
जिसे छोड़ा था सोचकर ये कुछ नहीं,
अब वही हर सांस में बना साज़गी।

39.
दिल्लगी ने मेरी हर बात छीन ली,
दिल की गहराईयों में तन्हाई बीन ली।
जिसने कभी खेला मेरे जज़्बातों से,
आज वही मेरी धड़कन का हिसाब है।

40.
दिल्लगी के जो लम्हे थे हसीन,
अब वही बन गए हैं दर्द के महीन।
दिल ने जिसे खेल समझकर चाहा,
आज उसी से हर उम्मीद ने दगा खाया।

41.
जिसे दिल्लगी में मुस्कुराकर छोड़ा था,
अब वही हर दर्द में रोया करता।
मोहब्बत का हर जख्म अब समझ आया,
जब दिल्लगी ने ही सबकुछ मिटाया।

42.
दिल्लगी की राहों में जो गुम हुआ,
मोहब्बत का हर ख्वाब उसमें टूट गया।
दिल ने जिसे हंसी-खुशी से अपनाया,
आज उसी ने हर खुशी का चेहरा जलाया।

43.
दिल्लगी ने जो दिया वो दर्द अनमोल है,
दिल को हर पल बस उसकी ही खोज है।
जिसे कभी मज़ाक समझा था,
अब वो ही मोहब्बत की सच्चाई है।

44.
दिल्लगी का हर कदम जब उल्टा पड़ा,
दिल ने उसे मोहब्बत का नाम दिया।
जिसे सोचा था हंसी का सहारा,
अब वही बन गया दिल का किनारा।

45.
दिल्लगी में जो बसा था सुकून,
अब वही बन गया दिल का जुनून।
जिसे छोड़ा था मुस्कुराकर कभी,
आज उसी ने हर आस छीन ली।

46.
दिल्लगी के नाम पर दिल को जोड़ा,
मोहब्बत ने उसे टुकड़ों में तोड़ा।
हर जख्म में अब वही नाम बसता है,
जिसे हंसी में खेला, वही अब तड़पाता है।

47.
जो दिल्लगी थी, वो सजा बन गई,
मोहब्बत की हर हसरत जला गई।
दिल ने जिसे खेल समझा था कभी,
आज उसी ने मोहब्बत का सबक सिखा दिया।

48.
दिल्लगी में मोहब्बत का ये हाल है,
हर खुशी अब तन्हाई का सवाल है।
जिसने कभी दिल्लगी से दिल लगाया,
अब उसी ने हर ख्वाब को जलाया।

49.
जो खेल था, अब सच्चाई बन गया,
दिल्लगी का हर दर्द गहराई बन गया।
दिल ने जिसे हंसी समझा,
आज उसी ने हर खुशी को रुलाया।

50.
दिल्लगी ने मेरी हर बात सिखा दी,
मोहब्बत ने हर सच्चाई दिखा दी।
जिसे सोचा था बस एक पल की खुशी,
अब वही मेरी जिंदगी का गम बन गई।

दिल्लगी शायरी हिंदी

दिल्लगी शायरी हिंदी
दिल्लगी शायरी हिंदी

50.
दिल्लगी थी तुम्हें, इश्क़ समझ बैठे,
अपने ही ख़्वाबों में हम उलझ बैठे।

51.
दिल्लगी ने किया दिल का ऐसा हाल,
सिसकियों में गूंजता है दिल का सवाल।

52.
तुम्हारी हंसी में खोया था कभी,
आज उन्हीं लम्हों का ग़म रोया कभी।

53.
दिल्लगी करके तुमने जो दिल तोड़ा,
हमने हर जख्म को मोहब्बत से जोड़ा।

54.
जिस दिल्लगी में मुस्कुराना था,
वो ग़म का समंदर बन जाना था।

55.
तेरी दिल्लगी को इश्क़ का नाम दिया,
और तूने मुझे दर्द से ईनाम दिया।

56.
दिल्लगी का गुनाह हमसे हुआ,
इश्क़ का दर्द हमारी किस्मत बना।

57.
तुम्हारी दिल्लगी के खेल में खो गए,
और अपनी पहचान तक खो गए।

58.
दिल्लगी समझकर खेला जो तुमने,
उस दिल ने इश्क़ के रंग देखे।

59.
तुम्हारे दिल्लगी के एक पल ने,
मेरा सारा जहां बदल दिया।

60.
दिल्लगी थी तुम्हारे लिए,
पर इश्क़ मेरी रगों में बसा।

61.
जो दिल्लगी में हंसते थे,
आज ग़म में बसते हैं।

62.
तुम्हारी दिल्लगी का असर ऐसा,
दिल ने फिर किसी को चाहा ही नहीं।

63.
दिल्लगी थी तुम्हारी चाहत,
पर मेरी ज़िंदगी का हिस्सा।

64.
दिल्लगी के हर जख्म को सहा,
पर इश्क़ का ग़म छुपा न सका।

65.
तुम्हारे दिल्लगी के छल से,
दिल के सारे अरमान जल गए।

66.
दिल्लगी का नशा ऐसा चढ़ा,
होश में आए तो दुनिया बदल गई।

67.
दिल्लगी के खेल में फंसकर,
हमने अपने आप को ही खो दिया।

68.
दिल्लगी की आग में जलते रहे,
और तुम खामोश रहकर चलते रहे।

69.
दिल्लगी का ऐसा दर्द दिया,
कि दिल अब इश्क़ से डर गया।

70.
तुम्हारी दिल्लगी के बाद,
मेरा हर लम्हा सवाल बन गया।

दिल्लगी शायरी रेख़्ता

दिल्लगी शायरी रेख़्ता
दिल्लगी शायरी रेख़्ता

दिल लगाओ तो लगाओ दिल से दिल
दिल-लगी ही दिल-लगी अच्छी नहीं
हफ़ीज़ जालंधरी

बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है
बाहर कितना सन्नाटा है अंदर कितनी वहशत है

ऐतबार साजिद

दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या हो
जानता कौन है पराई चोट

फ़ानी बदायुनी

दिल-लगी में हसरत-ए-दिल कुछ निकल जाती तो है
बोसे ले लेते हैं हम दो-चार हँसते बोलते

मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम

कोई दिल-लगी दिल लगाना नहीं है
क़यामत है ये दिल का आना नहीं है
दत्तात्रिया कैफ़ी

सोच लो ये दिल-लगी भारी न पड़ जाए कहीं
जान जिस को कह रहे हो जान होती जाएगी

अमीर इमाम

क़दमों पे डर के रख दिया सर ताकि उठ न जाएँ
नाराज़ दिल-लगी में जो वो इक ज़रा हुए

हबीब मूसवी

दिल्लगी शायरी फोटो

दिल्लगी शायरी फोटो
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71.
दिल्लगी में चाहा था तुझे,
इश्क़ में खोया था तुझे।
पर तेरा हर झूठा वादा,
दिल को दर्द दे गया मुझे।

72.
दिल्लगी थी तुम्हारे लिए खेल,
हमने इसे समझा मंज़िल का मेल।
पर तुमने तोड़ दिया वो ख्वाब,
जो हम देख रहे थे हर साल।

73.
तेरी दिल्लगी का मंजर कुछ ऐसा था,
हम जीते जी हर रोज़ मरते थे।
तेरे दिए हुए ग़मों का क्या कहें,
अब तो अश्क भी साथ छोड़ते हैं।

74.
दिल्लगी में हमने बस तुझे पाया,
इश्क़ में हमने बस ग़म कमाया।
तेरी हंसी पर हमने जहां लुटाया,
और तुमने इसे सिर्फ मजाक बनाया।

75.
दिल्लगी थी तुझसे, पर इश्क़ हम करते रहे,
तेरे झूठ में हम हर दिन मरते रहे।
तूने खेला दिल से, पर हम सच्चे थे,
तेरी खामोशी ने हमको अकेला कर दिया।

76.
तेरी दिल्लगी ने ऐसा जख्म दिया,
अब कोई मरहम भी काम ना आया।
जो हंसी कभी तेरे नाम से थी,
वो आज सिर्फ ग़म का पैगाम बन गया।

77.
दिल्लगी ने हमें बहुत सिखा दिया,
कैसे कोई अपना होकर भी पराया बनता है।
तेरे प्यार के सपने बस ख्वाब थे,
जो अब रातों को डर बनकर आता है।

78.
दिल्लगी की राहों में खो गए,
इश्क़ के अफसानों में रो गए।
तेरी हंसी के वो मीठे पल,
आज भी दिल में छुपे हैं गहरे जल।

79.
तेरी दिल्लगी का नशा भी अजीब था,
हमने इसे इश्क़ का नाम दिया।
तूने तोड़े दिल के हर अरमान,
और हम सोचते रहे तेरा हर इकरार।

80.
दिल्लगी थी एक खेल तुम्हारा,
पर इश्क़ हमारा सब कुछ था।
तुम्हारी मुस्कान के पीछे जो दर्द छुपा,
उसे समझने में हमने वक्त गवां दिया।

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