महावीर जयंती 2024के सुअवसर पर शुभकामना संदेश हिंदी में /Mahavir Jayanti Wishes & Quotes &Wishes in Hindi-हेल्ल्लो दोस्तों भगवान महावीर की जयंती प्रत्येक वर्ष चैत्र शक्ल पक्ष की त्रयोदशी को बड़ी धूम धाम से मनाई जाती है इस वर्ष ४अप्रेल को महावीर जयंती मनाई जाएगीआज भगवान महावीर के जन्म दिवस के उपलक्ष पर आप सबको बहुत बहुत बधाई , धन्य है हमारी भारत भूमि जहाँ समय समय पर धर्म की सच्ची ज्योति जगाने के लिए संतों , गुरों और तीर्थंकरों का आगमन होता है जिनका अवतरण हम सबको सत्य से अवगत कराना होता है दोस्तों भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर थे। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले बैशाली के कुण्डग्राम में अयोध्या इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार हुआ था। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ केवलज्ञान का स्तर तीर्थंकरों में इस प्रकार है
मिथ्या दृष्टि सासादन सम्यक्-दृष्टि
मिश्र दृष्टि
अविरत सम्यक्-दृष्टि
देश-विरत
प्रमत्त सम्यक्
अप्रमत्त सम्यक्
अपूर्वकरण
अनिवृतिकरण
सूक्ष्म-साम्पराय
उपशान्तमोह
क्षीणमोह
सयोगकेवली- योग सहित केवल ज्ञान। इस गुणस्थान में अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्त आत्मशक्ति प्राप्त हो जाते है।
अयोगकेवली – योग रहित केवल ज्ञान
जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया।जैन धर्म में समवशरण “सबको शरण”, तीर्थंकर के दिव्य उपदेश भवन के लिए प्रयोग किया जाता है| समवशरण दो शब्दों के मेल से बना है, “सम” (सबको) और “अवसर”। जहाँ सबको ज्ञान पाने का समान अवसर मिले, वह है समवशरण इसमें मुनि कोमल गद्दी पर विराजमान होते है परन्तु उसे छुते नही हैं
उससे दो ऊँगल उपर उनके मुख्य सिष्य विराजित होते हैं एनी स्क्स्भी इसी प्रकार होते हैं
पहले भवन में मुनि
दुसरे में, एक तरह की देवियाँ
तीसरे में, आर्यिका
अगले तीन भवन में, अन्य तीन तरह की देवियाँ
अगले चार भवन में, चार जातियों के देव (स्वर्गों में निवास करने वाले जीव)
ग्यारहवें भवन में पुरुष,
आखरी भवन में पशु 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई।
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महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं
महावीर जयंती पर निबंध
महावीर जयंती क्यों मनाई जाती है
महावीर जयंती कब की है
Mahavir Jayanti Wishes & Quotes &Wishes in Hindi
FAQ
महावीर जयंती पर आप किसी को बधाई कैसे देते हैं?
महावीर का संदेश क्या था?
जन्म के समय भगवान महावीर का क्या नाम था?
महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति कैसे हुई?
जैन दर्शन सबसे प्राचीन भारतीय दर्शन में से एक है। इसमें अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है
जैन दर्शन सबसे प्राचीन भारतीय दर्शन में से एक है। इसमें अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। आज की दुनियां को अहिंसा की बहुत जरूरत है आज विश्व में सभी देश हिंसा की आग में जल रहे हैं , हिंसा के कारन ही आज धरती पर असंख्य प्रजातियाँ नष्ट हो रही हैं हमारे धर्म हमें अहिंसा का ज्ञान देते आए हैं अगर हम सभी विश्व के लोग अहिंसा का मार्ग अपना लें तो धरती पर लगभग सभी समस्याओं का समाधान निश्चित है
भूत, भावी और वर्तमान के अर्हत् यही कहते हैं-किसी भी जीवित प्राणी को, किसी भी जंतु को, किसी भी वस्तु को जिसमें आत्मा है, न मारो, न अनुचित व्यवहार करो, न अपमानित करो, न कष्ट दो और न सताओ।जैन धर्म में सब जीवों के प्रति संयमपूर्ण व्यवहार अहिंसा है। अहिंसा का शब्दानुसारी अर्थ है, हिंसा न करना। इसके पारिभाषिक अर्थ विध्यात्मक और निषेधात्मक दोनों हैं। रागद्वेषात्मक प्रवृत्ति न करना, प्राणवध न करना या प्रवृत्ति मात्र का विरोध करना निषेधात्मक अहिंसा है; सत्प्रवृत्ति, स्वाध्याय, अध्यात्मसेव, उपदेश, ज्ञानचर्चा आदि आत्महितकारी व्यवहार विध्यात्मक अहिंसा है। संयमी के द्वारा भी अशक्य कोटि का प्राणवध हो जाता है, वह भी निषेधात्मक अहिंसा हिंसा नहीं है। निषेधात्मक अहिंसा में केवल हिंसा का वर्जन होता है, विध्यात्मक अहिंसा में सत्क्रियात्मक सक्रियता होती है। यह स्थूल दृष्टि का निर्णय है। गहराई में पहुँचने पर तथ्य कुछ और मिलता है। निषेध में प्रवृत्ति और प्रवृत्ति में निषेध होता ही है। निषेधात्मक अहिंसा में सत्प्रवृत्ति और सत्प्रवृत्यात्मक अहिंसा में हिंसा का निषेध होता है। हिंसा न करनेवाला यदि आँतरिक प्रवृत्तियों को शुद्ध न करे तो वह अहिंसा न होगी। इसलिए निषेधात्मक अहिंसा में सत्प्रवृत्ति की अपेक्षा रहती है, वह बाह्य हो चाहे आँतरिक, स्थूल हो चाहे सूक्ष्म। सत्प्रवृत्यात्मक अहिंसा में हिंसा का निषेध होना आवश्यक है। इसके बिना कोई प्रवृत्ति सत् या अहिंसा नहीं हो सकती, यह निश्चय दृष्टि की बात है। व्यवहार में निषेधात्मक अहिंसा को निष्क्रिय अहिंसा और विध्यात्मक अहिंसा को सक्रिय अहिंसा कहा जाता है।
भूत, भावी और वर्तमान के अर्हत् यही कहते हैं-किसी भी जीवित प्राणी को, किसी भी जंतु को, किसी भी वस्तु को जिसमें आत्मा है, न मारो, न अनुचित व्यवहार करो, न अपमानित करो, न कष्ट दो और न सताओ।
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णमोकार मन्त्र
णमोकार मन्त्र जैन धर्म में महत्वपूर्ण मन्त्र है
णमो अरहंताणं – अरिहंतों को नमस्कार हो।
णमो सिद्धाणं – सिद्धों को नमस्कार हो।
णमो आइरियाणं – आचार्यों को नमस्कार हो।
णमो उवज्झायाणं – उपाध्यायों को नमस्कार हो।
णमो लोए सव्व साहूणं – इस लोक के सभी साधुओं को नमस्कार हो।
एसो पंच णमोक्कारो – यह पाँच परमेष्ठियों को किया हुआ नमस्कार
सव्वपावप्पणासणो – सभी पापो का नाश करने वाला है
मंगलाणं च सव्वेसिं – और सभी मंगलो में
पढमं हवइ मंगलं – प्रथम मंगल है
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महावीर जयंती 2024के सुअवसर पर शुभकामना संदेश हिंदी में

1
सत्य -सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
2
अहिंसा – इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रीयों वाले जीव) है उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो।

3
अचौर्य-दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है।

4
अपरिग्रह – परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।

5
ब्रह्मचर्य- महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।

6
क्षमा -क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं “मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा माँगता हूँ। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ।”

7
‘मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पाप वृत्तियाँ प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियाँ की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियाँ विफल हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।’

8
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स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना ? वह जो स्वयं पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी.खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है
9
. अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है.
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10
सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं, और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं.
12
आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है. असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं , वो शत्रु हैं क्रोध, घमंड, लालच, आसक्ति और नफरत.
13
. आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है.
14
शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है.
15
प्रत्येक जीव स्वतंत्र है. कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता.
16
. भगवान का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है. हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है.
17
. प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है. आनंद बाहर से नहीं आता.
18
. सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है.
FAQ
भगवान महावीर के 10 अनमोल वचन
18. “जो धर्म को जानता है, वही सत्य को जानता है।”
19. “मनुष्य वही है, जो वह सोचता है।”
20. “जिंदगी का सबसे बड़ा लक्ष्य आत्मा का शुद्धिकरण है।”
21. “जो किसी अन्य के दुख से दुखी होता है, वही सच्चा धर्मात्मा है।”
22. “समाज के लिए अपनी जिम्मेदारियां निभाओ, क्योंकि हम सब एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं।”
23. “सच्चा ज्ञान वही है, जो मनुष्य को आत्मज्ञान की ओर मार्गदर्शन करे।”
24. “धर्म वही है, जो हमें आत्मा के उच्चतम सत्य की ओर ले जाए।”
25. “संसार में जो कुछ भी है, वह समय की सापेक्षता है, इसलिए किसी से मोह नहीं करना चाहिए।”
26. “जो अपने मन पर नियंत्रण रखता है, वही महान है।”
27. “किसी भी तरह की असत्य बातों से बचो, क्योंकि असत्य की कोई स्थायीता नहीं होती।”
28. “जो दूसरों की सेवा करता है, वही सच्चे अर्थों में खुद की सेवा करता है।”
29. “दुनिया में सबसे बड़ा धर्म है – आत्मा का शुद्धिकरण।”
30. “अपने अंतःकरण में शांति लाओ, तो बाहर की दुनिया भी शांतिपूर्ण हो जाएगी।”
भगवान महावीर के सिद्धांत
31. अपरिग्रह (Non-possession): भगवान महावीर ने हमें यह सिखाया कि हम अपने आस-पास की चीज़ों के प्रति मोह और अंहकार से मुक्त रहें। वे मानते थे कि जितना कम हम संलग्न रहते हैं, उतना ही शांति और संतोष पा सकते हैं।
32. अहिंसा (Non-violence): भगवान महावीर का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत था अहिंसा। उन्होंने कहा कि हर जीव के प्रति सम्मान और प्रेम होना चाहिए, क्योंकि हिंसा से केवल दुःख बढ़ता है।
33. सत्य (Truth): सत्य को भगवान महावीर ने सर्वोपरि बताया। उन्होंने कहा कि हमें हर परिस्थिति में सत्य का पालन करना चाहिए, क्योंकि झूठ से कोई स्थायी सफलता नहीं मिल सकती।
34. ब्रह्मचर्य (Celibacy): भगवान महावीर ने संयमित जीवन जीने का उपदेश दिया और ब्रह्मचर्य को आत्म-संयम और आत्मा की शुद्धता के लिए आवश्यक बताया।
35. तप (Austerity): तप और साधना से ही आत्मा की शुद्धि होती है। भगवान महावीर ने तप और संयम को अपने जीवन का हिस्सा बनाया और हमें भी यही सिखाया।
36. ध्यान (Meditation): ध्यान और साधना से मन को शांति मिलती है और आत्मा की गहरी समझ होती है। भगवान महावीर का मानना था कि नियमित ध्यान से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
37. प्रेम और करुणा (Love and Compassion): भगवान महावीर ने हर जीव के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखने की सलाह दी। वे मानते थे कि करुणा के माध्यम से ही हम सच्चे सुख और शांति को पा सकते हैं।
38. एकात्मता (Unity): भगवान महावीर ने हमें सिखाया कि हम सभी एकात्म हैं। हमें इस जीवन में किसी भी रूप में विभाजन और भेदभाव से बचना चाहिए।
39. आत्म-निर्भरता (Self-reliance): भगवान महावीर के अनुसार, आत्म-निर्भरता सबसे बड़ी शक्ति है। हमें किसी भी कार्य को अपने बलबूते पर करना चाहिए और बाहरी सहायता पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
40. कर्म (Action and Consequence): भगवान महावीर ने बताया कि हमारे सभी कर्मों का परिणाम होता है। अच्छे कर्मों से शुभ फल और बुरे कर्मों से दुःख और कष्ट मिलते हैं। इसलिए हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।
41. शांति (Peace): भगवान महावीर ने जीवन में शांति की महत्वपूर्णता पर जोर दिया। उनका कहना था कि शांति भीतर से आती है, और यदि हम आंतरिक शांति प्राप्त कर लें तो बाहरी शांति भी हमारे जीवन में रहेगी।
42. संतोष (Contentment): भगवान महावीर ने संतोष को एक बहुत बड़ा गुण बताया। उनका मानना था कि जो व्यक्ति संतुष्ट रहता है, वह सच्चे सुख को प्राप्त करता है।
43. दया (Mercy): भगवान महावीर के अनुसार, दया और सहानुभूति से बड़ा कोई धर्म नहीं है। दया से हम किसी के दुख को कम कर सकते हैं और अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं।
44. अहंकार का नाश (Elimination of Ego): भगवान महावीर ने अहंकार को जीवन में सबसे बड़ा शत्रु बताया। उन्होंने कहा कि हमें अपने अहंकार को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम सच्चे ज्ञान की ओर बढ़ सकें।
45. अस्तेय (Non-stealing): भगवान महावीर ने हमें किसी भी वस्तु की चोरी से बचने की सलाह दी। उनका कहना था कि जो अपने और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करता है, वही सच्चा जीवन जीता है।
46. साहस (Courage): भगवान महावीर ने साहस को एक प्रमुख गुण माना। उनका कहना था कि जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन हमें उन्हें पार करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है।
47. दान (Charity): भगवान महावीर ने दान को आत्मा के शुद्धिकरण का एक तरीका माना। उनका कहना था कि हमें अपने संसाधनों का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करना चाहिए।
48. श्रम (Hard work): भगवान महावीर ने श्रम को महत्व दिया। उनका मानना था कि किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए मेहनत और समर्पण आवश्यक है।
49. क्षमा (Forgiveness): भगवान महावीर ने क्षमा को जीवन का एक अहम हिस्सा बताया। उनका कहना था कि हमें दूसरों की गलतियों को माफ करने में सक्षम होना चाहिए, ताकि हमारी आत्मा शुद्ध हो सके।
50. जीवन का उद्देश्य (Purpose of Life): भगवान महावीर के अनुसार, जीवन का असली उद्देश्य आत्मा का शुद्धिकरण है। हम जितना अधिक अपने आंतरिक ज्ञान और सत्य को समझेंगे, उतना ही जीवन का उद्देश्य पूरा होगा।
जैन धर्म कोट्स
51. “विचारों में शुद्धता और कर्मों में पवित्रता ही सच्चे जीवन का मार्ग है।”
52. “जो दूसरों के कल्याण के लिए काम करता है, वही सच्चा जैन है।”
53. “जो आत्मा को पहचानता है, वह कभी भी दूसरों को चोट नहीं पहुँचाता।”
54. “धर्म का पालन किसी संस्था या संस्कृति से नहीं, बल्कि आत्मा की पवित्रता से होता है।”
55. “शरीर का भार कम करें, आत्मा की शुद्धता पर ध्यान दें।”
56. “सच्चे ज्ञान का मार्ग अहिंसा, सत्य और संयम से होकर जाता है।”
57. “जीवन का असली उद्देश्य केवल सांसारिक सुख नहीं, बल्कि आत्मा का शुद्धिकरण है।”
58. “जो किसी के साथ अन्याय करता है, वह अपनी आत्मा से धोखा करता है।”
59. “आपका कर्तव्य है दूसरों का सम्मान करना, क्योंकि यही सच्चा धर्म है।”
60. “जो जितना कम चाहता है, वही उतना अधिक सुखी होता है।”
61. “जो अपने मन पर विजय प्राप्त करता है, वही सच्चा विजेता है।”
62. “एक अच्छा इंसान वही है, जो दूसरों की मदद करता है बिना किसी स्वार्थ के।”
63. “अहिंसा का पालन ही सच्चे धर्म का पालन है।”
64. “अगर आप अपने आंतरिक शांति को पाना चाहते हैं, तो बाहरी दुनिया की हिंसा और कलह से बचें।”
65. “समाज की सेवा करने से आत्मा की शुद्धि होती है।”
66. “जो संसार से दूर रहता है, वह ही वास्तविक रूप से संसार के भीतर है।”
67. “सभी जीवों का सम्मान करना ही सच्चा धर्म है।”
68. “मौन और साधना से ही हम अपने असली आत्मा को पहचान सकते हैं।”
69. “आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का एकमात्र तरीका संयम और साधना है।”
70. “जब हम किसी को दुखी करते हैं, तो हम अपनी आत्मा को भी दुखी करते हैं।”
71. “शांति का असली मतलब है अपने अंतःकरण में शांति पाना।”
72. “अगर आप किसी को आहत करते हैं, तो उसका परिणाम आपको भोगना पड़ता है।”
73. “हमारा धर्म हमारे कर्मों से निर्धारित होता है, न कि हमारे शब्दों से।”
74. “धर्म का पालन करने से ही हमें जीवन की सच्चाई का एहसास होता है।”
75. “जो अपने अहंकार को नष्ट करता है, वह सबसे बड़े पुण्य का भागी है।”
76. “अपने भीतर की शांति को पहचानो, तब तुम संसार की हर समस्या से मुक्त हो जाओगे।”
77. “जो अपने कर्मों का विश्लेषण करता है, वही सच्चा साधक है।”
78. “सच्चा ज्ञान वही है, जो हमें आत्मा की वास्तविकता को समझाता है।”
79. “धर्म का मार्ग कभी आसान नहीं होता, लेकिन यही रास्ता सच्चे सुख की ओर जाता है।”
80. “समाज में हर किसी के साथ समानता का व्यवहार करना ही सच्ची धर्म की पहचान है।”
81. “जो दूसरों की गलतियाँ माफ करता है, वह सच्चा भक्त है।”
82. “धर्म का पालन केवल बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से भी होना चाहिए।”
83. “सत्य बोलने से कोई भी कार्य अशुभ नहीं होता।”
84. “जो अपने शरीर और आत्मा की देखभाल करता है, वह सच्चा जैन है।”
85. “धर्म की सबसे बड़ी पहचान है किसी भी परिस्थिति में अहिंसा का पालन करना।”
86. “धर्म का पालन करते हुए हमें हर स्थिति में संतुलित और शांत रहना चाहिए।”
87. “अपने पापों का प्रायश्चित ही आत्मा की शुद्धि का रास्ता है।”
88. “समाज की सेवा करना ही सच्चा पुण्य है।”
89. “सच्चा प्रेम वही है, जो दूसरों के भले के लिए किया जाए।”
90. “जो अपना समय आत्मा की साधना में लगाता है, वह संसार की सारी परेशानियों से परे रहता है।”
91. “किसी भी जीव के प्रति अनावश्यक हिंसा करना, आत्मा को कष्ट पहुँचाता है।”
92. “मौन रहने से मन को शांति मिलती है और आंतरिक ज्ञान जागृत होता है।”
93. “हमारे कर्मों का प्रभाव हमारे जीवन और भविष्य पर पड़ता है।”
94. “जो प्रेम और करुणा से जीवन जीता है, वही सच्चा संत है।”
95. “जीवन में शांति तभी आ सकती है जब हम अपने अंदर की नफरत और अहंकार को समाप्त कर दें।”
96. “जो अज्ञानी है, वही दूसरों को चोट पहुँचाता है, जबकि ज्ञानी केवल प्रेम और करुणा ही बाँटता है।”
97. “हर स्थिति में सत्य का पालन करना ही हमें सही मार्ग दिखाता है।”
98. “ध्यान और साधना के माध्यम से ही आत्मा की पवित्रता और ज्ञान का विकास होता है।”
99. “जैन धर्म की सच्ची पहचान है—अहिंसा, सत्य, और आत्मा की शुद्धि।”
100. “धर्म का पालन एक साधक की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि वही आत्मा की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।”
भगवान के सत्य वचन
101. “सत्य वही है, जो समय, स्थान और परिस्थिति के अनुसार न बदलने वाला हो।”
102. “जिसे जो सत्य समझ में आए, वह उसी के अनुसार जीवन जीता है, लेकिन सच्चा सत्य वही है, जो सार्वभौमिक हो।”
103. “सच्चे जीवन का आधार सत्य में है, जो आत्मा को शुद्ध करता है और समाज को सद्गति की ओर ले जाता है।”
104. “सत्य को समझने के लिए सबसे पहले हमें अपने मन की शांति प्राप्त करनी होगी।”
105. “सत्य से परे कोई भी मार्ग हमें असल मोक्ष तक नहीं पहुंचा सकता।”
106. “जो सत्य का पालन करता है, वह किसी भी आंतरिक या बाह्य शत्रु से भयभीत नहीं होता।”
107. “सच्चाई को स्वीकार करने के लिए हमें अपने भीतर के अहंकार को खत्म करना होगा।”
108. “जो सत्य का पालन करता है, वह न केवल अपने जीवन को परिष्कृत करता है, बल्कि समाज की भी सेवा करता है।”
109. “सत्य बोलने से न केवल दूसरों का भला होता है, बल्कि आत्मा भी शुद्ध होती है।”
110. “सत्य का पालन ही सभी कष्टों से मुक्ति का मार्ग है।”
111. “हर व्यक्ति को अपनी आत्मा के सत्य को जानने का अधिकार है, क्योंकि वही सत्य वास्तविक सुख का रास्ता है।”
112. “जो सत्य से डरता है, वह कभी भी सही मार्ग पर नहीं चल सकता।”
113. “सच्चाई को जानने और स्वीकारने से जीवन में शांति और संतोष आता है।”
114. “सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलने से आत्मा की शुद्धि होती है, और जीवन में असली सुख प्राप्त होता है।”
115. “सच्चे मार्ग पर चलने के लिए सबसे जरूरी है कि हम सत्य का साथ दें, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।”
116. “जो सत्य बोलता है, वह किसी से डरता नहीं है, क्योंकि सत्य अपने आप में शक्ति है।”
117. “सच्चे ज्ञान का आधार सत्य है, और वही हमें आत्मा की गहराई तक ले जाता है।”
118. “सत्य के बिना कोई भी कार्य शुभ नहीं हो सकता।”
119. “जो अपनी आत्मा के सत्य को जान लेता है, वही संसार की सभी मायाओं से मुक्त हो जाता है।”
120. “सत्य से ही आत्मा की पवित्रता और शांति की प्राप्ति होती है, क्योंकि वही जीवन का असली मार्ग है।”
121. “जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, वह न तो दुखी होता है, न ही उसे जीवन की अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।”
122. “सत्य का पालन करने से जीवन में कोई भी मुश्किल नहीं आती, क्योंकि हर परिस्थिति में आत्मा का मार्गदर्शन सत्य ही करता है।”
123. “सच्चे जीवन का आधार सत्य है, जो हर परिस्थितियों में स्थिर रहता है।”
124. “जो अपने हृदय में सत्य और प्रेम को लाता है, वही किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है।”
125. “सत्य को अपनाने से हमारी आत्मा को शुद्धि मिलती है और जीवन में हर मोड़ पर सहनशीलता और शांति आती है।”
126. “सत्य बोलने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि हम अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं और दूसरों को भी सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।”
127. “जब तक हम सत्य को पूरी तरह से नहीं समझते, तब तक हमें जीवन में वास्तविक सुख नहीं मिल सकता।”
128. “सच्चे व्यक्ति का जीवन सत्य के प्रकाश में जीने का होता है, जो हर कार्य में पारदर्शिता और ईमानदारी का संदेश देता है।”
129. “सत्य वही है, जो केवल आत्मा के सत्य से जुड़ा हुआ हो, और वही सबसे अधिक स्थायी होता है।”
130. “सत्य केवल बाहरी सत्य नहीं है, बल्कि यह हमारी आत्मा की गहराई से निकलता हुआ होता है, और यही हमें वास्तविक शांति प्रदान करता है।”